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Wednesday, May 12, 2021

यूपी में आपको ऑक्सीजन की कमी हो सकती है लेकिन शराब की कमी होने नहीं दी जाएगी

     बेेेवडे पधारो यूूपी

उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से भले ही मरीजों की मौत हो जाए मगर आपको योगी जी के राज में शराब की कमी महसूस होने नहीं दी जाएगी

        

एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां कोरोना रोकने के लिए मीटिंग में व्यस्त हैं, वहीं दूसरी ओर उनके DM शराब की दुकानों को खुलवाने में लगे हुए हैं

लखनऊ में अभी शराब की दुकानें बंद हैं, लेकिन ज्यादातर जिलों में दुकानें खुली हैं। इन दुकानों पर उमड़ी भीड़ कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रही है। लोग झोला भर-भरकर शराब खरीद रहे हैं। ऐसे में यह भीड़ कोरोना संक्रमण का सुपर स्प्रेडर बन सकती है।

यह आलम तब है, जब राज्य में जहरीली शराब पीने से अम्बेडकरनगर आजमगढ़ और बदायूं में 24 लोगों को जान जा चुकी है

दरअसल, शराब विक्रेता वेलफेयर एसोसिएशन ने पिछले दिनों सरकार से कोरोना कर्फ्यू के कारण बंद पड़ी दुकानों को खोलने की मांग की थी

 दुकानें बंद होने से कई जिलों में जहरीली शराब की तस्करी भी बढ़ गई थी

कई जिलों के डीएम के पास शराब की दुकान खोलने के लिए आबकारी विभाग की चिट्‌ठी भी पहुंच गई थी। जिसके चलते योगी सरकार ने प्रदेश में शराब की दुकानों खोलने को लेकर फैसला डीएम पर छोड़ दिया था। वहीं, माना जा रहा है कि राजस्व के नुकसान से बचने के लिए यह कदम उठाया गया है।


मेरठ की सड़कों पर ऐसा लगने लगा है कि शराब के ठेकों ने कोरोना संक्रमण के कहर को पीछे छोड़ दिया है। शराब के ठेके खुले तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। 2 गज की सोशल डिस्टेंसिंग तो दूर दो इंच का फासला भी नजर नहीं आया। लोग बैग और झोलों में शराब की बोतलें भरकर ले जाते नजर आए। इतना ही नहीं, दिल्ली रोड स्थित शराब के ठेके पर तो दो 
पुलिसकर्मी वर्दी पहने चार-पांच बोतल खरीदते कैमरे में कैद हो गए 

Wine Shop In UP

झांसी में भी डीएम ने शराब की दुकानों को खोलने की इजाजत दे दी है। इसके बाद से तय समय से पहले ही दुकानों के बाहर शौकीनों की कतारें भी नजर आने लगीं। जिले में देसी-विदेशी शराब और बीयर की 374 दुकानें हैं। कोरोना कर्फ्यू के चलते इन सभी दुकानों के शटर बंद हो गए थे। इस दरमियान शराब की कालाबाजारी भी जोरों पर चली तथा नकली शराब के कारोबारियों ने मौके का फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जबकि, कच्ची शराब का धंधा भी जोर पकड़


पहले छप कर बिकते थे जो अखबार अब बिक कर छपने लगे हैं

Tuesday, April 20, 2021

उत्तरप्रदेश के वाराणसी में माँ के पैरों के पास तड़प कर मर गया बेटा

जिगर का टुकड़ा तड़पता रहा मां बेटे को लेकर इस हॉस्पिटल से उस हॉस्पिटल भागती रही 
खबर वाराणसी की है

वाराणसी जो योगी आदित्यनाथ के राम राज्य में है वाराणसी जहां का सांसद इस वक्त देश का प्रधानमंत्री है वाराणसी जहां पर मोदी जी स्वयं को गंगा मां का लाल बताते थे
घटना मानवता को शर्मसार करने वाली है , जौनपुर जिले के मडियाहू निवासी विनय सिंह का भतीजा विनीत सिंह मुंबई में काम करता था / विनीत सिंह दिसंबर में एक शादी समारोह में भाग लेने के लिए अपने गांव आया था /जहां उसकी तबीयत खराब हो गई तो परिवार के लोगों ने जौनपुर में एक डॉक्टर को दिखाया / डॉक्टर ने किडनी की गड़बड़ी बताई औऱ किसी अच्छे अस्पताल में ले जाने की सलाह दी / मृतक के चाचा विनय सिंह ने बताया कि इसके बाद हम लोग बीएचयू में 5 बार लाइन (नंबर) लगाया
   दैनिक जागरण अखबार   

लेकिन किसी ने उसकी जांच नहीं की / तबीयत बिगड़ने पर मां अपने बेटे को ऑटो में लेकर फिर BHU पहुंची युवक तड़पता रहा पर किसी का दिल नहीं पसीजा , ककरमत्ता स्थित प्राइवेट अस्पताल पहुंची कोरोना को लेकर वहां भी जगह नहीं मिली न जांच हुई , टेम्पू में बैठी माँ औऱ मां के पैरों में ही उसके लाल ने तड़प कर दम तोड़ दिया 

Wednesday, April 7, 2021

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए NSA के 80% मामले खारिज

 

           इलाहाबाद हाई कोर्ट 

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले तीन सालों में जिन मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगाया उनमें से 120 मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया, उनमें से आधे से अधिक मतलब 61 मामले गोहत्या और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े हुए थे

हाईकोर्ट ने जिन कम से कम 50 बंदी प्रत्यक्षीकरण जिनमें अपना फैसला सुनाया उनमें से लगभग 80 फीसदी मामलों में हाईकोर्ट ने आदेशों को रद्द कर दिया और हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई का आदेश दे दिया.

सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में यह 100 फीसदी रहा जहां जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच हाईकोर्ट ने उसके सामने आई सभी 20 हीबियस कॉर्पस याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सभी मामलों में एनएसए के आदेश को रद्द कर दिया



पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि इन मामलों में सभी आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से थे और कम से कम चार मामलों में अदालत ने इस तथ्य को रिकॉर्ड में दर्ज किया.

उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच एनएसए केसों की सिलसिलेवार जानकारी दी.



534 मामलों में एनएसए लगाया गया और उनमें से 106 मामलों को वापस एडवाइजरी बोर्ड द्वारा वापस ले लिया गया जबकि 50 मामलों को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया.

कुछ मामले:

सांप्रदायिक दंगा भड़काने के आरोप में कानपुर के जिलाधिकारी ने 3 नवंबर 2017 को फर्खुंद सिद्दीकी एनएसए आदेश जारी किया था.

इस मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा, ‘यदि राज्य को लगता है कि वह जमानत के लायक नहीं है, तो राज्य जमानत देने का विरोध कर सकता है. हालांकि, उसे नजरबंदी के आदेश पर मुहर लगाकर अदालत को जमानत के लिए स्थानांतरित करने से नहीं रोका जा सकता. न्यायालय द्वारा जमानत देने की संभावना पर्याप्त नहीं हो सकती है. न ही एक अधूरा बयान कि व्यक्ति अपनी आपराधिक गतिविधियों को दोहराएगा पर्याप्त होगा.’

– मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी ने एक ही शख्स द्वारा दर्ज कराई गई दो एफआईआर के आधार पर 6 अक्टूबर 2018 को शमशेर के खिलाफ एनएसए जारी किया.

इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का यह तर्क कि निरोध आदेश मुख्य रूप से इस आधार पर पारित किया गया है कि याचिकाकर्ता मुस्लिम समुदाय से है, जबकि इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया कि दूसरी प्राथमिकी पहली प्राथमिकी का एक तार्किक निष्कर्ष था जिसमें उनका नाम नहीं था.

इसमें कहा गया, ‘शुरुआत में ही यह उल्लेख किया गया है कि भले ही याचिकाकर्ता का नाम दिया गया हो, कोई भी विशिष्ट भूमिका उसे नहीं सौंपी गई है. हालांकि यह उल्लेख किया गया है कि सौ लोगों की भीड़ जमा हो गई थी लेकिन किसी को भी कोई चोट नहीं आई थी, यहां तक कि एक खरोंच भी.’



तीन एफआईआर के आधार पर 25 मई 2018 को अलीगढ़ के जिलाधिकारी ने अदब के खिलाफ एनएसए जारी किया था.

10 जुलाई 2020 को जौनपुर के जिलाधिकारी ने जावेद सिद्दीकी के खिलाफ एनएसए लगाया था जिसमें आरोप था कि उन्होंने और 56 ज्ञात व 25 अज्ञात लोगों ने एक बस्ती में घुसकर दंगा और आगजनी के साथ जातिगत टिप्पणी की.



इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा, ‘जहां याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई करने में असाधारण जल्दबाजी दिखाई गई तो वहीं
अधिकारी अनिच्छुक रहे और उनकी ओर से पूर्ण निष्क्रियता थी जिससे हिरासत में रखे गए शख्स के प्रतिनिधित्व को संसाधित करने में अनुचित देरी हुई समक्ष
प्रतिनिधित्व नहीं रखा गया.’

उसने निष्कर्ष निकाला कि जहां कानून कार्यपालिका को असाधारण शक्ति प्रदान करता है कि वह बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में रखे और अदालतों द्वारा मुकदमे की सुनवाई कर सके, ऐसे कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए और कार्यकारी को अत्यधिक सावधानी के साथ शक्ति का प्रयोग करना चाहिए.





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