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Sunday, April 11, 2021


अमेरिकी नौसेना ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए भारत की पूर्वानुमति के बिना बीते बुधवार को लक्षद्वीप द्वीपसमूह के निकट भारतीय जलक्षेत्र में नौपरिवहन स्वतंत्रता अभियान शुरू कर दिया. अमेरिका ने कहा है कि उन्होंने भारत की ‘अत्यधिक समुद्री दावों’ को चुनौती देने के लिए ऐसा किया है. हैरानी की बात ये है कि अमेरिका ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि उसके जहाज भारत के जलीय क्षेत्र में बिना इजाजत के घुसे हैं. अमेरिकी नौसेना की सातवीं फ्लीट के कमांडर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि मिसाइल नाशक यूएसएस जॉन पॉल जोन्स के जरिये सात अप्रैल को यह अभियान शुरू किया गया. बयान में कहा गया है, ‘सात अप्रैल, 2021 को यूएसएस जॉन पॉल जोन्स (डीडीजी 53) ने भारत की अनुमति के बिना, अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र लक्षद्वीप द्वीपसमूह के पश्चिम से लगभग 130 समुद्री मील दूर नौपरिवहन अधिकार एवं स्वतंत्रता अभियान शुरू किया.’ भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) या उपमहाद्वीपीय इलाके में सैन्य अभ्यास या अभियान के लिये उससे पूर्वानुमति लेनी होती है. 



बयान में दावा किया गया है कि यह अभियान अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप शुरू किया गया है. बयान के अनुसार इस नौपरिवहन स्वतंत्रता अभियान ने भारत के ‘अत्यधिक समुद्री दावों’ को चुनौती देते हुए अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अधिकारों की स्वतंत्रता और समुद्र के विधि सम्मत उपयोग को बरकरार रखा है. बयान के अनुसार, अमेरिकी बल भारत-प्रशांत क्षेत्र में दैनिक अधार पर गतिविधियां करते हैं. सभी अभियानों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार अंजाम दिया जाता है. साथ ही यह स्पष्ट किया जाता है कि अमेरिका अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार जहां चाहें वहां हवाई, समुद्री और अन्य गतिविधियों को अंजाम दे सकता है. बयान में कहा गया है, ‘हम नियमित रूप से नौपरिवहन स्वतंत्रता अभियान का आयोजन करते हैं. हम अतीत में भी ऐसा कर चुके हैं और भविष्य में भी करते रहेंगे. नौपरिवहन स्वतंत्रता अभियान केवल एक देश के लिए नहीं होते.’ इस संबंध में भारत की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है और न ही इस बात की जानकारी दी गई है कि क्या भारतीय सेना में अमेरिकी जहाजों को चुनौती दी थी या नहीं. जब भारत ने वर्ष 1995 में यूएन कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ सी (यूएनसीएलओएस) को मंजूरी प्रदान की थी, तो उसने घोषणा की थी कि कन्वेंशन के प्रावधान अन्य देशों को विशेष आर्थिक क्षेत्र या उपमहाद्वीपीय इलाके में तटीय देश की मंजूरी के बिना सैन्य अभ्यास या अभियान के लिए मंजूरी प्रदान नहीं करते हैं. 





Wednesday, April 7, 2021

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लगाए गए NSA के 80% मामले खारिज

 

           इलाहाबाद हाई कोर्ट 

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले तीन सालों में जिन मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) लगाया उनमें से 120 मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया, उनमें से आधे से अधिक मतलब 61 मामले गोहत्या और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े हुए थे

हाईकोर्ट ने जिन कम से कम 50 बंदी प्रत्यक्षीकरण जिनमें अपना फैसला सुनाया उनमें से लगभग 80 फीसदी मामलों में हाईकोर्ट ने आदेशों को रद्द कर दिया और हिरासत में लिए गए लोगों की रिहाई का आदेश दे दिया.

सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में यह 100 फीसदी रहा जहां जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच हाईकोर्ट ने उसके सामने आई सभी 20 हीबियस कॉर्पस याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सभी मामलों में एनएसए के आदेश को रद्द कर दिया



पुलिस और अदालत के रिकॉर्ड्स दिखाते हैं कि इन मामलों में सभी आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से थे और कम से कम चार मामलों में अदालत ने इस तथ्य को रिकॉर्ड में दर्ज किया.

उत्तर प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने जनवरी 2018 और दिसंबर 2020 के बीच एनएसए केसों की सिलसिलेवार जानकारी दी.



534 मामलों में एनएसए लगाया गया और उनमें से 106 मामलों को वापस एडवाइजरी बोर्ड द्वारा वापस ले लिया गया जबकि 50 मामलों को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया.

कुछ मामले:

सांप्रदायिक दंगा भड़काने के आरोप में कानपुर के जिलाधिकारी ने 3 नवंबर 2017 को फर्खुंद सिद्दीकी एनएसए आदेश जारी किया था.

इस मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा, ‘यदि राज्य को लगता है कि वह जमानत के लायक नहीं है, तो राज्य जमानत देने का विरोध कर सकता है. हालांकि, उसे नजरबंदी के आदेश पर मुहर लगाकर अदालत को जमानत के लिए स्थानांतरित करने से नहीं रोका जा सकता. न्यायालय द्वारा जमानत देने की संभावना पर्याप्त नहीं हो सकती है. न ही एक अधूरा बयान कि व्यक्ति अपनी आपराधिक गतिविधियों को दोहराएगा पर्याप्त होगा.’

– मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी ने एक ही शख्स द्वारा दर्ज कराई गई दो एफआईआर के आधार पर 6 अक्टूबर 2018 को शमशेर के खिलाफ एनएसए जारी किया.

इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का यह तर्क कि निरोध आदेश मुख्य रूप से इस आधार पर पारित किया गया है कि याचिकाकर्ता मुस्लिम समुदाय से है, जबकि इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया गया कि दूसरी प्राथमिकी पहली प्राथमिकी का एक तार्किक निष्कर्ष था जिसमें उनका नाम नहीं था.

इसमें कहा गया, ‘शुरुआत में ही यह उल्लेख किया गया है कि भले ही याचिकाकर्ता का नाम दिया गया हो, कोई भी विशिष्ट भूमिका उसे नहीं सौंपी गई है. हालांकि यह उल्लेख किया गया है कि सौ लोगों की भीड़ जमा हो गई थी लेकिन किसी को भी कोई चोट नहीं आई थी, यहां तक कि एक खरोंच भी.’



तीन एफआईआर के आधार पर 25 मई 2018 को अलीगढ़ के जिलाधिकारी ने अदब के खिलाफ एनएसए जारी किया था.

10 जुलाई 2020 को जौनपुर के जिलाधिकारी ने जावेद सिद्दीकी के खिलाफ एनएसए लगाया था जिसमें आरोप था कि उन्होंने और 56 ज्ञात व 25 अज्ञात लोगों ने एक बस्ती में घुसकर दंगा और आगजनी के साथ जातिगत टिप्पणी की.



इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा, ‘जहां याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई करने में असाधारण जल्दबाजी दिखाई गई तो वहीं
अधिकारी अनिच्छुक रहे और उनकी ओर से पूर्ण निष्क्रियता थी जिससे हिरासत में रखे गए शख्स के प्रतिनिधित्व को संसाधित करने में अनुचित देरी हुई समक्ष
प्रतिनिधित्व नहीं रखा गया.’

उसने निष्कर्ष निकाला कि जहां कानून कार्यपालिका को असाधारण शक्ति प्रदान करता है कि वह बिना किसी व्यक्ति को हिरासत में रखे और अदालतों द्वारा मुकदमे की सुनवाई कर सके, ऐसे कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए और कार्यकारी को अत्यधिक सावधानी के साथ शक्ति का प्रयोग करना चाहिए.





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